Saturday 18 September 2021

दिखने लगा चुनावी फायदा, यूपी में सामने आया अल कायदा-सिद्धार्थ कलहंस

 

यह कोई संयोग नहीं था कि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की छवि पर धक्का लगने के बाद इसी साल जून में भारतीय जनता पार्टी में डैमेज कंट्रोल की कवायद शुरु होने के बाद ताबड़तोड़ तरीके से प्रदेश में अल कायदा, धर्मांतरण और जनसंख्या नियंत्रण कानून से लेकर कई स्थानों पर माब लिंचिग की घटनाएं एक साथ होने लगीं।

सबसे पहले बात उत्तर प्रदेश में पकड़े गए अल कायदा आतंकवादियों की, जिन्हें कथित तौर पर बड़ी घटना को अंजाम देने से पहले गिरफ्तार कर यूपी के आंतक रोधी बल (एटीएस) ने साजिश को नाकाम कर देने का दावा किया। पुलिस का दावा कि गिरफ्तार आतंकियों के तार अल-कायदा से जुड़े एक संगठन अंसार गजवातुल हिन्द से जुड़े थे और इनका हैंडलर पाकिस्तान के पेशावर में मौजूद था। गिरफ्तारी और उसके बाद बरामदगी साजिशकर्त्ताओं से पूछताछ का तानाबाना कुछ इस कदर बुना गया कि प्रवर्तन निदेशालय, एनआईए से लेकर तमाम केंद्रीय जांच एजेंसिया इसमें शामिल हो गयीं। अब तो पूरे मामले को एनआईए के हाथों में दे दिया गया है और उसने अपनी जांच शुरु कर दी है।

बीते महीने 11 जुलाई को यूपी पुलिस और एटीएस के संयुक्त आपरेशन में राजधानी लखनऊ में दुबग्गा क्षेत्र से मिनहाज अहमद और मोहिबुल्लापुर से मसरुद्दीन को गिरफ्तार कर अल कायदा के एक बड़े नेटवर्क के भंडाफोड़ का दावा किया गया। इन आतंकवादियों के घर से प्रेशर कुकर की बरामदगी दिखा कर दावा किया गया कि इससे बम बनाकर यूपी को दहलाने का इरादा था। हथियारों के नाम पर मिनहाज के घर से एक देशी पिस्तौल, कुछ चाकू तो मसरुद्दीन के घर से माचिस की कई डिब्बियां बरामद की गयीं।

इनके साथ ही अलग-अलग जगहों पर राजधानी में ही अन्य गिरफ्तारियां भी की गयीं और इन सबको अल कायदा नेटवर्क से ही जुड़ा बताया गया। स्थानीय पुलिस ने 50 वर्षीय मोहम्मद मुस्तकीम को भी मड़ियांव थाने बुलाकर गिरफ्तार किया गया जबकि 13 जुलाई को न्यू हैदरगंज निवासी 29 साल के मोहम्मद मुईद और जनता नगरी के रहने वाले 27 साल के शकील को भी गिरफ्तार किया गया।


अल कायदा जैसे दुनिया के सबसे बड़े आतंकी संगठन में काम करने वाले इन आरोपियों के बारे में भी जानना बहुत जरुरी है।

इनमें से एक मिनहाज की खदरा में बैटरी की दुकान थी जबकि मसीरूद्दीन व शकील बैटरी रिक्शा चलाते थे। गिरफ्तार किए गए मोहम्मद मुईद जमीन की खरीद बिक्री का काम करते थे और मोहम्मद मुस्तकीम ठेके पर मजदूर रख छोटे घर बनवाते थे। इनमें से मिनहाज को छोड़ दें तो मसीरूद्दीन, शकील, मोहम्मद मुईद व मोहम्मद मुस्तकीम निम्न मध्यम वर्ग परिवारों से हैं। मसीरूद्दीन व शकील तो रोज कमाने खाने वाले लोग थे जिन्होंने अपने बैटरी रिक्शा के लिए बैटरी मिनहाज से ली थी। मोहम्मद मुस्तकीम तो ऐसे फंस गया कि जब आतंकवाद निरोधक दस्ता मसीरूद्दीन को पकड़ने गया तो वह वहां मसीरूद्दीन के घर से सटे उसके भाई का घर बनवा रहा था। पहले सिर्फ उसका मोबाइल फोन व पहचान पत्र लिया गया किंतु बाद में थाने बुलाकर उसे गिरफ्तार भी कर लिया गया।

मिनहाज जरुर एक रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी का बेटा है जिसका पत्नी एक निजी विश्वविद्यालय में पढ़ाने का काम करती है। खुद मिनहाज भी पहले इसी विश्वविद्यालय में लैब असिस्टेंट के पद पर काम कर चुका है। अस्थाई नौकरी होने के चलते बीते कुछ साल पहले अपनी बैटरी की दुकान खोल दी थी। आंतकवादी होने के आरोप में पकड़े गए दो अन्य शकील और मसरुद्दीन बैटरी रिक्शा चलाते हैं और बैटरी चार्ज करवाने या बदलने के चलते मिनहाज के संपर्क में आए थे। इन दोनों के घरवालों का कहना है कि पांच-पांच रुपये की सवारियां ढोने वाले अल कायदा के लिए क्या काम करते होंगे। अधबने टीन की छत वाले मकान में रहने वाला मसरुद्दीन के परिजनों का कहना है कि प्रेशर कुकर तो हाल ही में नया खरीद कर लाया गया था जो बच्चियों को देने के लिए था। उसकी तीनों बच्चियां स्कूल में पढ़ती हैं। शकील के घर वजीरगंज का दौरा करने पर पड़ोसियों ने बताया कि कोरोना के दौर में रिक्शा चलाकर भी घर का पेट भरने में दिक्कतों का सामना कर रहे इस व्यक्ति का आतंकवादी कहा जाना हैरत में डालता है। शकील की गुरबत और उस पर टूट पड़ी आफत से आहत मोहल्ले वालों ने तो मामले को कवर करने गए पत्रकारों पर ही गुस्सा निकाला और उन्हें भगा दिया।

इन गिरफ्तारियों के बाद पुलिस की ओर से जो बयान जारी किए गए और बरामदगी में जो कुछ भी दिखाया गया उसके बाद आतंकवाद पर लिखने, शोध करने वालों और इसकी जानकारी रखने वालों ने सवाल खड़े करने शुरु कर दिए। पूरे मामले में सबसे अहम चीज प्रेशर कुकर की बरामदगी है जिससे बम बनाकर स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रदेश को दहलाने की साजिश बताया जाता है। बरामद हथियारों में सबसे बड़ा एक देशी पिस्तौल है जिसे मिनहाज के घर से पाया गया बताया है। माचिस की खाली डिब्बियों के संदर्भ में एटीएस के लोगों का कहना है कि इसका इस्तेमाल बम बनाने में किया जाता है। बरामद चाकूओं में से कुछ तो इतने दयनीय दशा में थे कि उनके बारे में बताना भी मुनासिब नही समझा गया।

बरसों से अपराध बीट पर काम करने वाले और आतंकवाद की रिपोर्टिंग में महरात रखने वाले पत्रकार दीपक शर्मा का कहना है कि अपने संगठन के बारे में इन बातों को पढ़ सुन कर अल कायद के अलंबरदार शायद आत्महत्या कर लेंगे। उनका कहना है कि सबसे अत्याधुनिक हथियारों, तकनीक और रणनीति का इस्तेमाल कर दुनिया में बड़ी घटनाओं को अंजाम देने वाला अल कायदा अब प्रेशर कुकर, देशी तमंचे और पिस्तौल पर उतर आया है ये अपने आप में हास्यास्पद है। उन्होंने कहा कि कम से कम यूपी की पुलिस को अब तो अपना स्क्रिप्ट राइटर बदल देना चाहिए और कम से कम कुछ बेहतर किस्सागोई करने वालों की भर्ती करनी चाहिए। शर्मा का कहना है कि इस तरह की हरकतों से न केवल अभियोजन पक्ष अदालत में कमजोर होगा, बल्कि जगहंसाई भी हो सकती है।

वहीं यूपी पुलिस के एक पूर्व अधिकारी बताते हैं कि प्रेशर कुकर बम का इस्तेमाल पहले-पहल तब सुना गया था, जब बंगलादेश से चलने वाले हूजीनाम के संगठन के कुछ आतंकवादी प्रदेश में पकड़े गए थे। उनके मुताबिक 2007  में हूजीआतंकी बाबू भाई की गिरफ्तारी के बाद प्रेशर कुकर बम की बात सामने आयी थी। अल कायदा और जैश जैसे संगठन इन तरीकों का कभी इस्तेमाल करते हैं- ये न कभी देखा या सुना गया। उनका भी कहना है कि हो सकता है कि अल कायदा के स्लीपिंग माड्यूल देश में और उत्तर प्रदेश में मौजूद हों पर कम से कम इस तरीके से चलाया गया कोई आपरेशन व बरामदगी को तो केवल हमारी पुलिस को हंसी का पात्र ही बनाएगी। उक्त अधिकारी का कहना है कि अल कायदा की कहानी में कितना दम है ये तो विवेचना पूरी हो जाने के बाद ही पता चलेगा पर अगर ये कहानी सही साबित होती है तो इस बड़े आतंकी संगठन की नयी और अनूठी रणनीति का पता सबको चलेगा।

आतंकी नेटवर्क के खुलासे के ठीक पहले ही यूपी की पुलिस ने धर्मांतरण में शामिल एक गिरोह को पकड़ने का दावा भी किया और ताबड़तोड़ गिरफ्तारी भी की हैं। धर्मांतरण गिरोह के तार देश के ज्यादातर राज्यों से जुड़े होने का दावा भी किया गया है। मामले का मुख्य आरोपी मौलाना जहांगीर कासमी और उमर गौतम को बताया गया है जिससे जुड़े लोगों की महाराष्ट्र में भी गिरफ्तारी की गयी है। धर्मांतरण के मामले में आईएसआई और विदेशी फंडिग का भी दावा किया गया है जिसकी जांच की जा रही है।

कुछ इसी समय उत्तर प्रदेश में जनसंख्या नियंत्रण कानून की भी कवायद शुरु की गयी है। कानून का ड्राफ्ट मुख्यमंत्री को सौंपा जा चुका है और इसी के साथ इसे लेकर बयानबाजी का दौर भी शुरु हो गया है। हालांकि जनसंख्या नियंत्रण कानून के प्रावधानों पर सत्ताधारी भाजपा से जुड़े संगठन विश्व हिन्दू परिषद ने ही आपत्ति जता दी है। प्रदेश की लगातार घटती प्रजनन दर का हवाला देते हुए परिषद ने कानून के मसौदे पर ही सवाल उठा दिए हैं।

राजनैतिक जानकारों का कहना है कि उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों से पहले वो सभी मुद्दे उठाए जा रहे हैं जो ध्रुवीकरण में सहायक हो सकते हैं। अनायास ही नहीं है कि साढ़े चार साल तक सरकार चलाने के बाद एकायक यूपी में एक साथ धर्मांतरण, अलकायदा से लेकर तमाम चीजें एक साथ निकल कर आने लगी हैं। गाजियाबाद से लेकर कानपुर तक माब लिचिंग की घटनाएं भी इन्हीं दिनों बढ़ने लगी है। प्रदेश के कुछ शहरों में एक बार फिर से अल्पसंख्यक बहुल मोहल्लों में मकान बिकाउ हैंके पोस्टर भी नजर आने लगे हैं। सवाल जरुर उठता है कि चार सालों तक रामराज चलने के बाद अचानक से इन घटनाओं का उभार कैसे होने लगा है। यह भी माना जा रहा है कि भाजपा के खुद के आंतरिक सर्वे में कोरोना संकट के बाद हालात बहुत पतली दिखाई दी है और इसे लेकर डैमेज कंट्रोल की कवायद तेज की गयी है। संगठन की ओर से सरकार में बदलावों पर भी विचार किया गया पर आखिरकार सुई ध्रुवीकरण पर ही आकर अटकी है जिसे जीत का सबसे मुफीद फार्मूला माना गया है।

लेखक पत्रकार हैं

दस्तक नए समय की अंक सितम्बर अक्टूबर २०२१ में प्रकाशित लेख

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