झारखंड सरकार लगातार झारखंड में किसी को भी भूख से नहीं मरने देने का दावा कर रही है, लेकिन जमीनी हकीकत इनके दावों से मेल नहीं खाती है। केन्द्र सरकार के द्वारा अचानक देशव्यापी लाॅकडाउन घोषित होने के पहले ही जिन राज्यों ने 31 मार्च तक अपने राज्य में लाॅकडाउन की घोषणा की थी, उसमें से झारखंड राज्य भी था। जनता कर्फ्यू की शाम को ही यानि कि 22 मार्च की शाम को ही झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्य में 31 मार्च तक लाॅकडाउन की घोषणा कर दी थी। अचानक हुए इस लाॅकडाउन के कारण देश के अन्य राज्यों की तरह झारखंड में भी मजदूर बेरोजगार हो गये और अपनी बची-बचायी जमा-पूंजी से किसी तरह अपनी भूख को मिटाते रहे।
इस बीच झारखंड
सरकार ने भी अप्रैल-मई का राशन एक ही बार देने की घोषणा की। झारखंड सरकार
ने घोषणा किया कि झारखंड में लगभग 58 लाख कार्डधारियों के अलावा जिन्होंने
भी राशन कार्ड के लिए आवेदन दिया है (लगभग 7 लाख), उन्हें भी राशन दिया
जाएगा। झारखंड सरकार ने झारखंड कोविड-19 रिपोर्ट कार्ड में 20 अप्रैल तक
घोषित किया है कि लाॅकडाउन के दौरान लगभग 65 लाख परिवारों के बीच 2 लाख 65
हजार मैट्रिक टन अनाज का वितरण किया गया है। साथ ही पूरे राज्य में 6628
मुख्यमंत्री दीदी किचन, 380 पुलिस थानों में कम्युनिटी किचन व 900
मुख्यमंत्री दाल-भात केन्द्र के द्वारा रोजाना 12 लाख से अधिक लोगों को
भोजन कराया जा रहा है।
अब 21 अप्रैल को दुमका जिला में हुई घटना को देखें..
दुमका
जिले के शिकारीपाड़ा थाना क्षेत्र के सरसडंगाल गांव की महिलाएं 21 अप्रैल
को दुमका -रामपुरहाट मुख्य सड़क किनारे जमा हो गईं और वहां से गुजर रहे
अनाज से भरे ट्रकाें को लूटने का प्रयास किया। महिलाओं ने आरोप लगाया कि
लॉकडाउन के कारण उनकी रोजी-रोजगार छिन गयी है। वे और उनके परिवार के
सदस्याें के अलावा उनके छाेटे-छाेटे बच्चे भूख से तड़प रहे हैं। सड़क
किनारे खड़ी महिलाएं एफसीआई गोदाम से डीलर के यहां ले जाया जा रहा अनाज से
भरा ट्रक को जबरन रोक लिया। महिलाओं ने अनाज की कुछ बाेरियां जबरन ट्रकाें
से उतार भी लिया।
अनाज हंशापत्थर गांव के जन वितरण प्रणाली के
डीलर के यहां ले जाया जा रहा था। हालांकि इस बीच शिकारीपाड़ा थाना प्रभारी
वकार हुसैन और अंचलाधिकारी अमृता कुमारी काे मामले की जानकारी मिली, ताे वे
तत्काल सदल बल घटनास्थल पर पहुचे। उन्हाेंने आक्रोशित महिलाओं को
समझा-बुझाकर शांत कराया और महिलाओं द्वारा ट्रक से उतारे गए अनाज को पुनः
वापस ट्रक पर लोड करवा कर रवाना किया गया।
आक्रोशित महिलाओं ने
अंचलाधिकारी और थाना प्रभारी काे अपनी व्यथा सुनायी। धना मरांडी व किरण
टूडू ने अंचलाधिकारी को अपना दुखड़ा सुनाते हुए कहा कि सरकार की ओर से आपदा
राहत कोष में जो फंड दिया गया है, उससे भी आज तक उनलोगों को चावल नहीं
नसीब हुआ है।
इस घटना को देखने के बाद यह स्पष्ट
हो जाता है कि झारखंड सरकार के द्वारा जारी किये गये झारखंड कोविड-19
रिपोर्ट कार्ड के दावे जमीनी हकीकत से कोसों दूर हैं। झारखंड सरकार की
योजनाएं गांवों तक पहुंच ही नहीं पा रही है। प्रतिदिन भिन्न-भिन्न इलाकों
से यह भी खबर आ रही है कि डीलर राशन नहीं दे रहा है। कहीं राशन दे रहा है,
तो कम दे रहा है। कई जगहों पर मुख्यमंत्री दाल-भात केन्द्र के अचानक बंद
होने की बात भी सामने आ रही है। कहीं-कहीं मामला हाइलाइट हो जाने के कारण
प्रशासन को एक्शन भी लेना पड़ा है, कई डीलरों के लाइसेंस भी कैंसिल हुए
हैं।
लाॅकडाउन के दौरान झारखंड में जारी है भूख से मौत
लाॅकडाउन
के दौरान झारखंड में 'भूख' से मौतों का सिलसिला भी जारी है, लेकिन
प्रत्येक बार भूख से हुई मौत (मृतक के परिजनों के द्वारा कहा गया भूख से
मौत) को शासन-प्रशासन नकार दे रही है।
रामगढ़ जिला के गोला
प्रखंड अंतर्गत संग्रामपुर गांव में 1 अप्रैल को 72 वर्षीय उपासी देवी की
मौत हो गई, उनके पुत्र जोगन नायक का कहना था कि मेरी माँ की मौत भूख से हुई
है। लेकिन प्रशासन ने इसे नकार दिया। मालूम हो कि इस वृद्ध महिला का राशन
कार्ड रद्द हो गया था, जिस कारण इसे राशन भी नहीं मिला था। इन्होंने अंतिम
बार अपना राशन मई 2017 में ही उठाया था।
गढ़वा जिला के भण्डरिया
प्रखंड के कुरून गांव में 2 अप्रैल को लगभग 70 वर्षीय सोमारिया देवी की
मृत्यु हो गई, इनके पति लच्छू लोहरा का कहना था कि मेरी पत्नी की मौत भूख
से हुई है। लेकिन प्रशासन ने इसे भी नकार दिया।
सरायकेला-खरसावां
जिला के चौका थानान्तर्गत पदोडीह निवासी 51 वर्षीय मजदूर शिवचरण की मौत 20
अप्रैल को हो गई, इनके परिजनों का कहना था कि लाॅकडाउन के कारण इनको काम
नहीं मिल रहा था और ये बेरोजगार हो गये थे। इनका राशन कार्ड भी महिला विकास
समिति, गुंजाडीह की संचालिका ने रख लिया था और राशन कार्ड देने के एवज में
इनसे पैसा मांगा जा रहा था। फलस्वरूप इन्हें राशन भी नहीं मिल सका और इनकी
मौत भूख से हो गई। लेकिन अन्य जगहों की तरह ही इसे भी शासन-प्रशासन ने
नकार दिया।
अब सवाल उठता है कि आखिर कब तक लोग
अपनी भूख को दबाकर घर में पड़े रहेंगे ? कोरोना के बदले भूख से ही वे दम
तोड़ रहे हैं। इस परिप्रेक्ष्य में दुमका की महिलाओं ने अनाज से भरे ट्रकों
को लूटने की कोशिश करके आने वाले समय की दस्तक दे दी है। बांग्लादेश के
कवि रफीक आजाद की कविता 'भात दे हरामजादे' के जरिए आप झारखंड के भूख से
पीड़ित लोगों की स्थिति को समझ सकते हैं....
बहुत भूखा हूँ, पेट के भीतर लगी है आग, शरीर की समस्त क्रियाओं से ऊपर
अनुभूत हो रही है हर क्षण सर्वग्रासी भूख, अनावृष्टि जिस तरह
चैत के खेतों में, फैलाती है तपन
उसी तरह भूख की ज्वाला से, जल रही है देह
दोनों शाम, दो मुट्ठी मिले भात तो
और माँग नहीं है, लोग तो बहुत कुछ माँग रहे हैं
बाड़ी, गाड़ी, पैसा किसी को चाहिए यश,
मेरी माँग बहुत छोटी है
जल रहा है पेट, मुझे भात चाहिए
ठण्डा हो या गरम, महीन हो या मोटा
राशन का लाल चावल, वह भी चलेगा
थाल भरकर चाहिए, दोनों शाम दो मुट्ठी मिले तो
छोड़ सकता हूँ अन्य सभी माँगें
अतिरिक्त लोभ नहीं है, यौन क्षुधा भी नहीं है
नहीं चाहिए, नाभि के नीचे की साड़ी
साड़ी में लिपटी गुड़िया, जिसे चाहिए उसे दे दो
याद रखो, मुझे उसकी ज़रूरत नहीं है
नहीं मिटा सकते यदि मेरी यह छोटी माँग, तो तुम्हारे सम्पूर्ण राज्य में
मचा दूँगा उथल-पुथल, भूखों के लिए नहीं होते हित-अहित, न्याय-अन्याय
सामने जो कुछ मिलेगा, निगलता चला जाऊँगा निर्विचार
कुछ भी नहीं छोड़ूँगा शेष, यदि तुम भी मिल गए सामने
राक्षसी मेरी भूख के लिए, बन जाओगे उपादेय आहार
सर्वग्रासी हो उठे यदि सामान्य भूख, तो परिणाम भयावह होते है याद रखना
दृश्य से द्रष्टा तक की धारावाहिकता को खाने के बाद
क्रमश: खाऊँगा,पेड़-पौधे, नदी-नाले
गाँव-कस्बे, फुटपाथ-रास्ते, पथचारी, नितम्ब-प्रधान नारी
झण्डे के साथ खाद्यमन्त्री, मन्त्री की गाड़ी
मेरी भूख की ज्वाला से कोई नहीं बचेगा,
भात दे, हरामज़ादे ! नहीं तो खा जाऊँगा तेरा मानचित्र
दर्दनाक स्थिति चल रही है. दिल्लीके केजरीवाल,झारखण्ड के शोरेन यह सरे सिस्टम के क्या,आरएसएस के चापलूस बन चुके है.इस अवाम के लोग अगर बिद्रोही नहीं बने तो बहुत शीघ्र मिट जायेंगे.
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